मनुष्य बन गया तो उसे विदा करते हुए विधाता ने कहा-‘‘तात् ! जाओ और संसार के प्राणियों का हित करते हुए स्वर्ग और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करो और ऐसा कुछ न करना, जिससे तुम्हें मृत्यु के समय पछतावा हो।’’ आदमी ने विनय की, ‘‘भगवन् ! आप एक कृपा और करना। मुझे मरने से पहले चेतावनी अवश्य दे देना ताकि यदि मैं मार्ग भ्रष्ट हो रहा होऊँ तो सँभल जाऊँ ?’’ तथास्तु कहकर विधि ने मनुष्य को धरती पर भेज दिया, पर यहाँ आकर मनुष्य इंद्रिय-भोगों में पड़कर अपने लक्ष्य को भूल गया। जैसे-तैसे आयु समाप्त हुई, कर्मों के अनुसार यमदूत उसे नरक ले जाने लगे तो उसने विधाता से शिकायत की, आपने मुझे मृत्यु के पूर्व चेतावनी क्यों न दी ? विधाता हँसे और बोले-‘‘ (1) तेरे हाथ काँपे, (2) दाँत टूट गये, (3) आँखो से कम दीखने लगा, (4) बाल पक गए, यह चार संकेत पर भी तू न सँभला इसमें मेरा क्या दोष ?
मृत्यु प्रतिपल निकट आती हैं। उसकी सूचनाएँ भी मिलती हैं, परंतु अज्ञानवश हम अचेत ही रह जाते हैं।
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