सोमवार, 3 जनवरी 2011

महाकाल का संदेश

परमपूज्य गुरूदेव आचार्य श्री राम शर्मा ने जीवन भर जनकल्याण हेतु साहित्य सृजन किया, उनके तप एवं ज्ञान का निचोड़ उनके साहित्य में हैं। सभी लोगों तक यह ज्ञानगंगा पहुँचे, इसीलिए ‘पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य वांग्मय’ का प्रकाशन किया गया हैं। लाखों ने इसे पढ़कर जीवन धन्य बनाया हैं। हर घर में वांग्मय की स्थापना होनी चाहिए, परिवार के लिए यह अमूल्य धरोहर एवं विरासत है

यदि आपको भगवान ने श्री-संपन्नता दी हैं तो ज्ञानदान कर पुण्य अर्जित करें। विशिष्ट अवसरों एवं पूर्वजों की स्मृति में पूज्यवर का वांग्मय विद्यालयों, पुस्तकालयों में स्थापित कराएँ। विवाह, जन्मदिवस एवं अन्य उत्सवों पर अथवा पारितोषिक स्वरूप भी यह साहित्य अमूल्य भेंट सिद्ध होगा। आपका यह ज्ञानदान आने वाली पीढ़ियों तक को सन्मार्ग पर चलायेगा, जो भी इसे पढ़ेगा, धन्य होगा। शास्त्रों में कहा हैं-

सर्वेषामेव दानानं ब्रह्मदानं विशिष्यते।
वार्यन्नगोमहीवासस्तिलकान्चनसर्पिषाम्।।
-मनुस्मृति 4/233

जल, अन्न, गौ, पृथ्वी, वस्त्र, तिल, सुवर्ण और घी इन सबके दानों में से ज्ञान का दान सबसे उत्तम हैं।

श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परंतप।
सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते।।
-गीता 4/33

हे परंतप ! द्रव्य यज्ञ से ज्ञानयज्ञ श्रेष्ठ हैं, क्योंकि जितने भी कर्म हैं, वे सब ज्ञान में ही समाप्त होते है। ज्ञानदान सर्वोपरि पुण्य हैं, शुभ कार्य हैं।

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