अध्यात्म कही जाने वाली जीवन-विद्या एक एसा तथ्य हैं, जिसके उपर मानव-कल्याण की आधार-शिला रखी हुई है। उसे जिस सीमा तक उपेक्षित एवं तिरस्कृत किया जायेगा, उतना ही दुःख दारिद्रय बढता जाएगा। हमारी सम्पन्नता, समृद्धि, शान्ति, समर्थता एवं प्रगति का एक मात्र अवलम्बन जीवन विद्या ही हैं। यदि हमें सुखी और प्रगतिशील होकर जीना हैं तो स्मरण रखा जाना चाहिये कि दृष्टिकोण में उत्कृष्टता और आदर्शवादिता का समुचित समन्वय नितान्त अनिवार्य हैं। इसकी विमुखता सर्वनाश को सीधा निमन्त्रण देने के बराबर हैं।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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