जो आत्मा की जिज्ञासा नहीं करता और उसे मुक्त करने के प्रयत्नो की ओर से विमुख हैं, वह जन्म-जन्मान्तरो तक इस प्रकार ही दुःख भोगता रहेगा, जिस प्रकार वर्तमान में भोग रहा हैं। ज्ञान के अतिरिक्त इस भ्रामक भव-रोग की अन्य कोई ओषधि नहीं, जिसकी प्राप्ति विद्या बल पर ही की जा सकती हैं।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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