अक्षर ज्ञान शिक्षा नहीं, शिक्षा से मेरा मतलब हैं बच्चें या मनुष्य की तमाम शारीरिक, मानसिक और नैतिक शक्तियों का सर्वतोंमुखी विकास। अक्षर ज्ञान शिक्षा का न तो आरम्भ हैं और न लक्ष्य हैं। वह तो उन अनेक उपायों में से एक हैं जिनके द्वारा स्त्री-पुरुषों को शिक्षित किया जा सका हैं। खुद अक्षर प्रचार को शिक्षा कहना गलत हैं। सच्ची शिक्षा तो स्कूल छोडने के बाद शुरु होती हैं। जिसने इसका महत्त्व समझा हैं वह सदा ही विद्यार्थी हैं। - महात्मा गांधी
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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