1) अपने मन को केवल दूसरों के कल्याण की भावना देते रहने मात्र से स्वयं का कल्याण हो जायेगा।
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2) अपने मन में वजनदार निर्भयता या प्रेम भावना हो तो घने जंगलो में भी आनन्द से रहा जा सकता है।
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3) अपने मूल्यांकन की एक ही कसौटी हैं- सद्गुणों का विकास और इनका एकमात्र सच्चा स्त्रोत हैं- व्यक्ति की पवित्र भावना। यह भावना जिसमें जितनी हैं, उसमें उसी के अनुरुप सद्गुणो की फसल लहलहायेगी। यदि भावना में कलुष हैं तो वहाँ पर दुर्गुणो को फलते-फूलते देर न लगेगी।-------------------
4) अपने मित्रों को एकान्त में भला बुरा कहो, परन्तु उनकी प्रशंसा सबके सम्मुख करो।-------------------
5) अपने सिद्धान्त पर जीने की शर्त के लिये त्याग आवश्यक है।-------------------
6) अपने विश्वास की रक्षा करना, प्राण रक्षा से भी अधिक मूल्यवान है।-------------------
7) अपने विचारों को लिखें, आखिर एक छोटी सी पेन्सिल, लम्बा याद रखने से बेहतर है।-------------------
8) अपने निकट सम्बन्धी का दोष सहसा नहीं कहना चाहिये, कहने से उसको दुःख हो सकता हैं, जिससे उसका सुधार सम्भव नही।-------------------
9) अपने पर विश्वास करना आस्तिकता की निशानी है।-------------------
10) अपने शत्रुओं की बातों पर सदैव ध्यान दीजिये, क्योकि तुम्हारी कमजोरियों को उनसे अधिक कोई नही जानता है।-------------------
11) अपने स्वार्थ से पहले दूसरों के लाभ का भी ध्यान रखना चाहिये।-------------------
12) अपने सुख-दुःख का कारण दूसरों को न मानना चाहिये।-------------------
13) अपने उपर विजय प्राप्त करना सबसे बडी विजय है।-------------------
14) अपने दृष्टिकोण को सदा पवित्र रखे।-------------------
15) अपने दोष-दुर्गुण खोजें एवं उसे दूर करे।-------------------
16) अपने दोषो की ओर से अनभिज्ञ रहने से बडा प्रमाद इस संसार में और कोई नहीं हो सकता।-------------------
17) अपने दोषो को सुनकर चित्त में प्रसन्नता होनी चाहिये।-------------------
18) अपने दोष ही अंततः विनाशकारी सिद्ध होते है।-------------------
19) अपने व्यक्तित्व को सुसंस्कारित और चरित्र को परिष्कृत बनाने वाले साधक को गायत्री महाशक्ति मातृवत् संरक्षण प्रदान करती है।-------------------
20) अपने जीवन को अन्तरात्मा द्वारा निर्धारित उच्चतम मानदण्डो पर जीने का प्रयास करे।-------------------
21) अपने आपको जानना हैं, दूसरों की सेवा करना हैं और ईश्वर को मानना हैं। ये तीनो क्रमशः ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग है। साथ में योग (समता) का होना आवश्यक है।-------------------
22) अपने आचरण से शिक्षा देने वाला आचार्य कहलाता है।-------------------
23) अपने गुण कर्म स्वभाव का शोधन और जीवन विकास के उच्च गुणों का अभ्यास करना ही साधना है।-------------------
24) आराधना के समय उन लोगो से दूर रहो, जो भक्त और धर्मनिष्ठ लोगो का उपहास करते हो।-------------------
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