1) जगत् में कुछ भी मुश्कित नहीं, केवल संकल्प की दृढता चाहिये।
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2) न इतने कठोर बनो कि लोग तुमसे डरने लगे और न इतने को कि लोग सिर चढे।
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3) न अशुभ सोचें, न दोष ढूँढे, न अन्धकार में भटके।------------------
4) न्यायसंगत बात कहने के लिये हर समय उपयुक्त है।------------------
5) नशा (व्यसन) उज्ज्वल मन का भयानक अन्धकार है।------------------
6) नकारात्मक विचार व्यक्ति की शक्ति क्षीण करते है।------------------
7) नम्र बनेंगे तो लोग नमन करते हुए सहयोग देगे।------------------
8) नम्रता, भक्ति, श्रद्धा और विश्वास के बगैर कोई धर्म नहीं रह सकता है।------------------
9) नम्रता, प्रेमपूर्ण व्यवहार तथा सहनशीलता से मनुष्य तो क्या देवता भी वश में हो जाते है।------------------
10) नहीं विरोधी से भी द्वेष, यह अपना सिद्धान्त विशेष।------------------
11) नहीं वस्तु कोई बेकार, दृष्टि चाहिये परखनहार।------------------
12) नरक कोई स्थान नहीं, संकीर्ण स्वार्थपरता की ओर निकृष्ट दृष्टिकोण की प्रतिक्रिया मात्र है।------------------
13) नरक और कहीं नहीं, महत्वाकांक्षाओं के इर्द-गिर्द घूमने वाले जीवन में है।------------------
14) नास्तिकता ईश्वर की अस्वीकृति को नही, आदर्शो की अवहेलना को कहते है।------------------
15) नेतृत्व जीवन के क्रिया-कलापों द्वारा किया जाता हैं, बातों से नही।------------------
16) नारी का सम्मान जहाँ, संस्कृति का उत्थान वहाँ।------------------
17) नारी का असली श्रंगार, सादा जीवन उच्च विचार।------------------
18) नारी के बिना पुरुष की बाल्यावस्था असहाय, युवावस्था आनन्दरहित और वृद्धावस्था सांत्वना शून्य हो जाती है।------------------
19) नारी के प्रति भोग्या भाव, यह हैं पशुओं का बर्ताव।------------------
20) नारी पवित्रता की धुरी है।------------------
21) नाशवान् में मोह होता हैं, अविनाशी में प्रेम होता है।------------------
22) नवयुग यदि आयेगा तो विचार-शोधन द्वारा ही, क्रान्ति होगी तो वह लहू और लोहे से नहीं, विचारों की विचारों से काट द्वारा होगी, समाज का नवनिर्माण होगा तो वह सद्विचारों की प्रतिष्ठापना द्वारा ही सम्भव होगा।------------------
23) नैतिक बल के विकास के समानुपातिक आत्मबल का विकास होता है।------------------
24) नैतिकता एक गरिमापूर्ण जीवन शैली है।------------------
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