मंगलवार, 11 अगस्त 2009

श्री अरविंद

पांडिचेरी आकर रह रहे योगी श्री अरविंद पूर्ण रूप से साधना मे संलग्न रहते थे, कभी घर से बाहर भी नही निकलते, पर अँगरेज सरकार के जासूस उनके पीछे ही पडे़ रहते थे । ऐसे ही किसी व्यक्ति ने पांड़िचेरी पुलिस को सुचना दी कि दो क्रांतिकारियों की सहायता लेकर श्री अरंविद आपत्तिजनक साहित्य तैयार कर रहे है , जिसका सम्बन्ध भारत से भागकर फ्रांस में रह रहे क्रांतिकारी नेताओ से है । एक फ्रांसीसी पुलिस ऑफीसर श्री अरंविद के आश्रम में तलाशी लेने आया । उसने वहाँ जो आध्यात्मिक साहित्य पर ग्रीक, लैटिन फ्रेंच भाषा की पांडुलिपियाँ देखी , तो वह योगीराज का मित्र बन गया । फिर किसी को उधर आँख उठाकर देखने नही दिया । पॉल रिचार्ड एवं मिर्रा रिचार्ड पहले कुछ दिन के लिए एवं बाद में 1920 में पांडिचेरी स्थायी रूप से आ गए । फिर श्री अरविंद का पूरा ध्यान मिर्रा रिचार्ड रखने लगी । बाद में वही आश्रम की श्री माताजी कहलाई । एक क्रांतिकारी के रूप मे जीवन आरंभ करने वाले श्री अरविंद का जीवन एक महानायक की शिखर यात्रा का प्रतीक है, जिसमें वे आध्यात्मिकता की ऊँचाइयों तक पहुँचने एवं अतिमानस के अवतरण की घोषणा कर गए । 

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