चैतन्य महाप्रभु न्याशास्त्र के विद्वान थे । परमज्ञानी थे। पत्नी विष्णुप्रिया थीं। दोनो का जीवन ठीक ही चल रहा था, पर श्री कृष्ण में भक्ति जगी तो जबरदस्त वैराग्य जागा । दिनो दिन खाना नहीं खाते। `कृष्ण कृष्ण' कहकर पड़े रहते । ऐसी स्थिति हो गई कि घर वालो ने कहा- ``ऐसी स्थिति में शरीर छूटे , उससे अच्छा है कि संन्यास दिला दें । ´´ गुरू के पास ले गए । उनने कहा कि हम परीक्षा लेंगें । गुरू ने जीभ पर शक्कर के दाने रखे । वे उड़ गए। गले नही । मन उर्ध्वगामी हो चुका था। वृत्ति भागवताकार हो चुकी थी । गुरू भारती तीर्थ बोले- ``यह तो बडी उच्चस्तरीय आत्मा है। यह शिष्य नहीं, हमारे गुरू होने योग्य है। हमारा अहोभाग्य है। ऐसा व्यक्ति नही देखा , जो इतना ईश्वरोन्मुख हो । यही सच्चा ब्रह्मचर्य है। ´´
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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