मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

चित्रगुप्‍त हमें देख रहा है

भीतरी दुनियाँ में गुप्‍त-चित्र या चित्रगुप्‍त पुलिस और अदालत दोनों महकमों का काम स्‍वयं ही करता है। यदि पुलिस झूठा सबूत दे दे तो अदालत का फेसला भी अनुचित हो सकता है, परंतु भीतरी दुनियाँ में ऐसी गड़बड़ी की संभावना नहीं। अंत:करण सब कुछ जानता है कि यह कर्म किस विचार से, किस इच्‍छा से, किस परिस्थिति में, क्‍यों कर किया गया था। वहाँ बाहरी मन को सफाई या बयान देने की जरूरत नहीं पड़ती क्‍योंकि गुप्‍त मन उस बात के संबंध में स्‍वयं ही पूरी-पूरी जानकारी रखता है। हम जिस इच्‍छा से, जिस भावना से जो काम करते हैं, उस इच्‍छा या भावना से ही पाप-पुण्‍य का नाप होता है।

भौतिक वस्‍तुओं की तोल-नाप बाहरी दुनियाँ में होती है। एक गरीब आदमी दो पैसा दान करता है और एक धनी आदमी दस हजार रूपया दान करता है, बाहरी दुनियाँ तो पुण्‍य की तौल रुपए-पैसों की गिनती के अनुसार करेगी। दो पैसा दान करने वाले की ओर कोई आँख उठाकर भी नहीं देखेगा, पर दस हजार रूपया देने वाले की प्रशंसा चारों ओर फैल जाएगी। भीतरी दुनियाँ में यह तोल-नाप नहीं चलती। बाहरी दुनियाँ में रूपयों की गिनती से, काम के बाहरी फैलाव से, कथा-वार्ता से, तीर्थयात्रा आदि भौतिक चीजों से यश खरीदा जाता है, पर चित्रगुप्‍त देवता के देश में यह सिक्‍का नहीं चलता, वहाँ तो इच्‍छा और भावना की नाप-तौल है। उसी के मुताबिक पाप-पुण्‍य का जमा-खर्च किया जाता है।
Book: गहना कर्मणोगति
-युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

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