मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

मूल्यांकन की कसौटी

मनुष्य की श्रेष्ठता की कसौटी यह होनी चाहिए कि उसके द्वारा मानवीय उच्च मूल्यों का निर्वाह कितना हो सका, उनको कितना प्रोत्साहन दे सका। योग्यताएँ विभूतियाँ तो साधन मात्र हैं। लाठी एवं चाकू स्वयं न तो प्रशंसनीय हैं, न निन्दनीय। उनका प्रयोग पीड़ा पहुँचाने के लिए हुआ या प्राण रक्षा के लिए ? इसी आधार पर उनकी भर्त्सना या प्रशंसा की जा सकती है।

मनुष्य की विभूतियाँ एवं योग्यताएँ भी ऐसे ही साधन हैं। उनका उपयोग कहाँ होता है इसका पता उसके विचारों एवं कार्यों से लगता है। वे यदि सद् हैं तो यह साधन भी सद् हैं पर यदि वे असद् हैं, तो वह साधन भी असद् ही कहे जायेंगे।

मनुष्यता का गौरव एवं सम्मान इन जड़-साधनों से नहीं उसके प्राणरूप सद्विचारों एवं सद्प्रवृत्तियों से जोड़ा जाना चाहिए। उसी आधार पर सम्मान देने, प्राप्त करने की परम्परा बनायी जानी चाहिए।

-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम-६६ (५.१३

कोई टिप्पणी नहीं:

LinkWithin

Blog Widget by LinkWithin