प.पू. गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा समय-समय पर अनेक गोष्ठियों में परिजनों को कहे हुए प्रेरक वाक्यों का संकलन एवं क्रान्तिधर्मी साहित्य की महत्ता
1. बेटे ! क्रान्तिधर्मी साहित्य मेरे अब तक के सभी साहित्य का मक्खन है । मेरे अब तक का साहित्य पढ़ पाओ या न पढ़ पाओ, इसे जरूर पढ़ना । इन्हें समझे बिना मिशन को न तो तुम समझ सकते हो, न ही किसी को समझा सकते हो ।…..
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2. बेटे ! ये इस युग की युगगीता है । एक बार पढ़ने से न समझ आये तो सौ बार पढ़ना । जैसे अर्जुन का मोह गीता से भंग हुआ था, वैसे ही तुम्हारा मोह इस युगगीता से भंग होगा ।.....
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3. हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं । हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है । दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं । आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए । हमको आगे बढ़ने दीजिए, सम्पर्क बनाने दीजिए ।…..--------------
4. मेरे जीवन भर का साहित्य शरीर के वजन से ज्यादा भारी है । यदि इसे तराजू के एक पलड़े पर रखें और क्रांतिधर्मी साहित्य को (युग साहित्य को) एक पलड़े पर, तो इनका वजन ज्यादा होगा ।.....--------------
5. आवश्यकता और समय के अनुरूप गायत्री महाविज्ञान मैंने लिखा था । अब इसे अल्मारी में बन्द करके रख दो । अब केवल इन्हीं (क्रांतिधर्मी साहित्य को-युग साहित्य को) किताबों को पढ़ना । समय आने पर उसे भी पढ़ना । महाकाल ने स्वयं मेरी उँगलियाँ पकड़कर ये साहित्य लिखवाया है ।…..--------------
6. ये उत्तराधिकारियों के लिए वसीयत है । जीवन को-चिन्तन को बदलने के सूत्र हैं इसमें । गुरु पूर्णिमा से अब तक पीड़ा लिखी है, पढ़ो । …..--------------
7. हमारे विचार, क्रांति के बीज हैं, जो जरा भी दुनिया में फैल गए, तो अगले दिनों धमाका करेंगे । तुम हमारा काम करो, हम तुम्हारा काम करेंगे ।…..--------------
8. 1988-90 तक लिखी पुस्तकें जीवन का सार हैं- सारे जीवन का लेखा-जोखा है । 1940 से अब तक के साहित्य का सार है ।….--------------
9. जैसे श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को सभी तीर्थों की यात्रा कराई, वैसे ही आप भी हमें (विचार रूप में – क्रान्तिधर्मी साहित्य के रूप में) संसार भर के तीर्थ प्रत्येक गाँव, प्रत्येक घर में ले चलें ।….--------------
10. बेटे, गायत्री महाविज्ञान एक तरफ रख दो, प्रज्ञापुराण एक तरफ रख दो । केवल इन किताबों को पढ़ना-पढ़ाना व गीता की तरह नित्य पाठ करना ।…..--------------
11. ये गायत्री महाविज्ञान के बेटे-बेटियाँ हैं, ये (इशारा कर के ) प्रज्ञापुराण के बेटे-बेटियाँ हैं । बेटे, (पुरानों से) तुम सभी इस साहित्य को बार-बार पढ़ना । सौ बार पढ़ना और सौ लोगों को पढ़वाना । दुनिया की सभी समस्याओं का समाधान इस साहित्य में है ।…..--------------
12. ये हमारे विचार क्रांति के बीज हैं । इन्हें लागत मूल्य पर छपवाकर प्रचारित प्रसारित करने की सभी को छूट है । कोई कापीराइट नहीं है ।…..--------------
13. अब तक लिखे सभी साहित्य को तराजू के एक पलड़े पर रखें और इन पुस्तकों को दूसरी पर, तो इनका वजन ज्यादा भारी पड़ेगा ।--------------
14. शांतिकुंज अब क्रांतिकुंज हो गया है । यहाँ सब कुछ उल्टा-पुल्टा है । सातों ऋषियों का अन्नकूट है ।--------------
15. बेटे, ये 20 किताबें सौ बार पढ़ना और कम से कम 100 लोगों को पढ़ाना और वो भी सौ लोगों को पढ़ाएँ । हम लिखें तो असर न हो, ऐसा न होगा ।…..--------------
16. आज तक हमने सूप पिलाया, अब क्रांतिधर्मी के रूप में भोजन करो ।…..--------------
17. प्रत्येक कार्यकर्त्ता को नियमित रूप से इसे पढ़ना और जीवन में उतारना युग-निर्माण के लिए जरूरी है । तभी अगले चरण में वे प्रवेश कर सकेंगे । …..--------------
18. वसंत पंचमी 1990 को वं. माताजी से - मेरा ज्ञान शरीर ही जिन्दा रहेगा । ज्ञान शरीर का प्रकाश जन-जन के बीच में पहुँचना ही चाहिए और आप सबसे कहियेगा – सब बच्चों से कहियेगा कि मेरे ज्ञान शरीर को- मेरे क्रान्तिधर्मी साहित्य के रूप में जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास करें ।…..--------------
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