हर संगठन अपने आप में स्वतंत्र है । उनके ऊपर क्षेत्रीय, प्रान्तीय संगठन न बनेंगे । केन्द्र से जो प्रकाश मिलता है उसके अनुरूप दिशा निर्धारित करने में यह संगठन सहायता ले सकते हैं । किसी तरह का बंधन उसके साथ भी नहीं हैं । युग निर्माण योजना एक विचार-पद्धति एवं कार्य पद्धति-मात्र है । उसे बन्धनात्मक झंझटों में जकड़ा नहीं गया है । स्थानीय संगठन ही इसके लिए पर्याप्त हैं । प्राचीनकाल में सभी धर्म, सम्प्रदाय एवं आन्दोलन इसी आधार पर चलते और फलते-फूलते थे । आज जब से डेमोक्रेसी की सरकारी पद्धति धर्म संगठनों और संस्थाओं में घुस पड़ी है तब से जो पदलोलुपता का रोग सरकारों में, वही इन संगठनों में भी घुस पड़ा और धूर्त लोग अपने स्वार्थ साधने के लिए इस तंत्र का दुरुपयोग करने लगे हैं । हमें इस जंजाल से अपने संगठन-क्रम को सर्वथा बचाये रखना है । केवल छोटे स्थानीय संगठन ही पर्याप्त माने जायेंगे । उनका नैतिक एवं बौद्धिक मार्ग-दर्शन केन्द्र करेगा ।
हॉं, निर्धारित विचारधारा से प्रतिकूल आचरण अथवा प्रमाद करने पर प्रतिबंध रहेगा । ऐसे संगठनों को बिरादरी से बहिष्कृत करने का दण्ड दिया जा सकेगा।
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम-६६ (३.२६)
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