एक दार्शनिक का कहना है कि - संसार में आधे उत्पात अनैतिकता के कारण और आधे मानसिक उद्विग्नता के कारण होते हैं | यदि आवेश एवं उद्वेग जैसी मानसिक दुर्बलता पर विजय प्राप्त कर ली जाय तो संसार में फैले हुये संकटों में से आधे तो तुरन्त ही समाप्त हो सकते हैं | अनैतिकता की तरह उद्विग्नता भी मानव जीवन के लिये समान रूप से हानिकारक है |
इसलिए जहाँ हमें पापों को दूर करने और धर्म को बढ़ने के लिये प्रयत्न करना है, वहाँ आवेश ग्रस्त होने के पागलपन को भी ध्यान में रखना है | यदि पाप मिट जाय और असहिष्णुता एवं तुनक मिजाजी इसी प्रकार बने रहें तो संसार की नारकीय स्थिति इसी प्रकार बनी रहेगी |
गीताकार ने सुझाया है कि प्रत्येक विचारशील व्यक्ति को मानसिक संतुलन बनाये रहने का अभ्यासी होना चाहिये | प्रिय परिस्थितियों में न तो अहंकार एवं हर्षतिरेक में डूब जाना चाहिये और न थोड़ी सी प्रतिकूलता एवं अड़चन प्रस्तुत देखकर हड़बड़ा जाना चाहिये |
दोनों ही स्थितियों में अपनी गंभीरता बनाये रखना चाहिये और संसार के स्वरुप एवं प्रवाह को समझते हुये धैर्यपूर्वक सब कुछ सुनना, समझना और करना चाहिये |
- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
वांग्मय - ३१ - संस्कृति - संजीवनी श्रीमद् भागवत एवं गीता - १.१६६
Immorality and mental imbalance both are equally harmful
According to one philosopher, half of the world’s problems are due to immorality and the other half are due to mental imbalance. If we conquer debilitating traits of the mind such as hysteria, stress, anxiety and agitation, half of the various problems plaguing this world would be solved immediately.
Mental agitation and stress are just as harmful for our lives as immoral, unethical behavior. Uncontrolled emotions do as much harm as uncontrolled senses. Therefore as we try to increase virtues and decrease vices [in our lives], we should also be wary of [and try to avoid] the madness caused by our uncontrolled reaction to emotional duress.
If we remove all the vices [from this earth] except intolerance and capriciousness, hellish conditions will still prevail. The creator of Geeta [Shri Krishna] has advised that each rational human being should be adept in maintaining perfect mental balance.
We should not drown in egotism or euphoria when success smiles on us, nor should we succumb to panic at the slightest hint of obstacles. In times of happiness and in misery, we should retain our composure and serenity. While trying to comprehend the grand scheme of things [of this world], we should patiently listen, then understand, and then act as the situation demands.
- Pt. Shriram Sharma Acharya
From Vangmay 31 - Sanskriti Sanjeevani Shrimad Bhagvat evum Geeta - page 1.166
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