मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

क्या हम मनुष्य है ?

क्या हम मनुष्य है ? अटपटे से लगने वाले इस सवाल का जवाब बड़ा सीधा है। संवेदना मे जितनी हमारी गहराई होगी, मनुष्यता मे उतनी ही ऊंचाई होगी और संग्रह मे जितनी ऊंचाई होगी, मनुष्यता मे उतनी ही नीचाई होगी। संवेदना और संग्रह जिन्दगी की दो दिशाए है। संवेदना सम्पूर्ण हो तो संग्रह शून्य हो जाता है और जिनके चित्त संग्रह की लालसा से घिरे रहते है, संवेदना वहाँ अपना घर नही बसाती।

अरब देश की एक मलिका ने अपनी मौत के बाद कब्र के पत्थर पर निम्न पंक्तियालिखने का हुक्म जारी किया-" इस कब्र मे अपार धनराशि गडी हुई है, जो व्यक्तिअत्यधिक निर्धन, दीन-दरिद्र और अशक्त हो, वह इसे खोद कर प्राप्त कर सकता है। "कब्र बनाये जाने के बाद से हजारो दरिद्र और भिखमंगे उधर से गुजरे, लेकिन उनमे से कोई भी इतना दरिद्र नही था कि धन के लिए किसी मरे हुई व्यक्ति की कब्र खोदे।

आखिरकार वह इन्सान भी आ पहुँचा, जो उस कब्र को खोदे बिना नही रह सका। अचरज की बात तो यह थी कि कब्र खोदने वाला यह व्यक्ति स्वयं एक सम्राट था। उसने कब्र वाले इस देश को अभी-अभी जीता था। अपनी जीत के साथ ही उसने बिना समय गँवाए उस कब्र की खुदाई का काम शुरू कर दिया, लेकिन कब्र की गहराई मे उसे अपार धनराशि के बजे एक पत्थर मिला, जिस पर लिखा हुआ था- ऐ कब्र खोदने वाले इन्सान, तू अपने से सवाल कर-" क्या तू सचमुच मनुष्य है ? "

निराश व अपमानित वह सम्राट, जब कब्र से वापस लौट रहा था तो लोगो ने कब्र के पास रहने वाले बुढे भिखमंगे को जोर से हंसते देखा। वह कह रहा था-" मैं सालो से इंतजार कर रहा था, अंततः आज धरती के सबसे अधिक निर्धन, दरिद्र एवम् अशक्त व्यक्ति का दर्शन हो ही गया ! " सचमुच संवेदना जिस ह्रदय मे नही है, वही दरिद्र, दीन और अशक्त है। जो संवेदना के अलावा किसी और संपत्ति के संग्रह के फेर मे रहता है, एक दिन उसकी सम्पदा ही उससे पूँछती है-क्या तू मनुष्य है ? और आज हम पूंछे अपने आप से-क्या हम मनुष्य है ?

अखंड ज्योति दिसम्बर २००५

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