मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

स्वस्थ मन का रहस्य

जो अपनी जिंदगी मे कुछ करने मे असफल रहते है, वे प्रायः आलोचक बन जाते है |दूसरो की कमिया देखना, निंदा करना उनका स्वभाव बन जाता है | यहाँ तक की ऐसे लोग अपनी कमियों-कमजोरियों का दोष भी दूसरो के सर मढ़ देते है | सच, यही है की जीवन-पथ पर चलने में जो असमर्थ है, वे राह के किनारे खड़े होकर औरो पर पत्थर फेंकने लगते है | ध्यान रहे स्वस्थ मन वाला व्यक्ति कभी किसी की निंदा मे सलंगन नही होता है |

लोकमान्य तिलक से किसी ने आश्चर्यचकित होते हुऐ पूंछा - " कई बार आपकी बहुत निन्दापूर्ण आलोचनाये होती है, लेकिन आप तो कभी विचलित नही होते | " उत्तर मे लोकमान्य तिलक मुस्कराए और बोले- " निंदा ही क्यों कई बार लोग प्रशंषा भी करते है|" ऐसा कह कर उन्होंने पूंछने वाले की आँखों मे गहराई से झाँका और बोले-"यह तो मेरी जिन्दगी का रहस्य है, पर मे आपको बता देता हूँ | निंदा करने वाले मुझे शैतान समझते है और प्रशंसक मुझे भगवान का दर्जा देते है, लेकिन सच मे जानता हूँ और वह सच यह है कि मै न तो शेतान हूँ और न भगवान | मै तो एक इन्सान हूँ, जिसमे थोड़ी कमिया है और थोड़ी अच्छाइया और मै अपनी कमियों को दूर करने एवम् अच्छाइयों को बढ़ाने मे लगा रहता हूँ |"

" एक बात और भी है " _ लोकमान्य ने अपनी बात आगे बढाई | जब अपनी जिन्दगी को मै ही अभी ठीक से नही समझ पाया तो भला दूसरे क्या समझेंगे | इसलिये जितनी झूंठ उनकी निंदा है, उतनी ही उनकी प्रशंसा है | इसलिए मै उन दोनों बातो की परवाह न करके अपने आप को और अधिक सँवारने-सुधारने की कोशिश करता रहता हूँ |" सुनने वाले व्यक्ति को इन बातो को सुनकर लोकमान्य तिलक के स्वस्थ मन का रहस्य समझ मे आया | उसे अनुभव हुआ की स्वस्थ मन वाला व्यक्ति न तो किसी की निंदा करता है और न ही किसी निंदा अथवा प्रशंशा से प्रभावित होता है |

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