मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

बोध

बोध का परिणाम है त्याग | जो अंतस मे बोध के घटित हुऐ बिना त्याग करता है, उनका जीवन केवल आडम्बर बन कर रह जाता है | अंतर्भावों की घुटन, बैचेनी उन्हें निरन्तर सालती रहती है | एक युवक भगवान तथागत के पास पहुँचा | उसके चेहरे पर विजय का भाव था | अपने भावों को व्यक्त करते हुऐ उसने शास्ता से कहा-'' उसने गृहत्याग करने की सारी तैयारिया पूरी कर ली है | अब वह भिक्षु बनने के योग्य हो गया है|" उस युवक के इस दर्प भरे कथन पर भगवान हँस दिए |

महात्मा बुद्ध की इस हँसी को वहां पास बैठे सारिपुत्र मे देखा | युवक के चले जाने के बाद उन्होंने भगवान से हँसी का रहस्य जानना चाहा | उत्तर मे सारिपुत्र की और देखते हुऐ बुद्ध बोले-" संसार की तैयारियो की बात तो सुनी थी, पर सन्यास की तैयारिया क्या है ?यह कथन समझ मे नही आया | संसार से सन्यास मे परिवर्तन-चित्त मे बोध - क्रांति के बिना घटित नही हो सकता | त्याग करना, सन्यास लेना, भिक्षु होना न तो वेश परिवर्तन है और न गृह परिवर्तन है | यह तो विशुद्ध द्रष्टि परिवर्तन है | त्याग के लिए तो चित्त का समग्र परिवर्तन चाहिए |"

शास्ता के इन शाश्वत वचनों ने सारिपुत्र के अंतःकरण को छुआ, पर इनसे अछुता वह युवक फिर से एक दिन बुद्ध के पास आया और थोड़ा चिंतित स्वर मे बोला-"त्याग की सारी तैयारियों मे एक कसर बाकी रह गई है | अभी चीवर की व्यवस्था जुटानी है |"उसके कथन पर बुद्ध विहंस कर बोले- " युवक ! सारा सामान छोड़ने के लिए ही कोई भिक्षु होता है, तू उसी को जुटाने के लिए परेशान है | जा अपनी दुनिया मे लोट जा, तू अभी भिक्षु होने योग्य नही है| इसके लिए तो बोध की सम्पदा चाहिए, जो विवेक-वैराग्यके बिना नही मिलती | "

अखंड ज्योति २००८

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