धन-संपदा की वसीयतें तो आम बात हैं, पर भावनाओं की वसीयत के उदाहरण बिरले ही देखने को मिलते हैं। सरदार भगत सिंह के होश सँभालने से पहले ही उनके चाचा सरदार अजीत सिंह अँगरेजी सरकार से विद्रोह करने के सिलसिले में फरार हो चुके थे। भगत सिंह को उसके बाद उनके दर्शन न हो सके । भगत सिंह अपने प्रिय चाचा के चरणचिन्हों पर चलकर देश के लिए मर मिटे। मरते दम तक उनकी ख्वाहिश रही कि उनको अपने उन चाचा के दर्शन हो जाते, जिनने देशभक्ति की प्रबल उमंगे अनदेखे सूत्रो से उन्हे सौंप दी थीं -
भावनात्मक वसीयत के रुप में ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें