ऐसा कहा जाता है कि चांगदेव 1400 वर्षो से योग-साधना कर रहे थे। उन्हे भारत का महान योगी माना जाता था। ज्ञानेश्वर सहित तीनों अन्य भाई-बहनो की प्रशंसा सुन उनके मन में आया कि इनसे सत्यासत्य की जानकारी लूँ। प्रश्न रुप में एक सादा कागज भेज दिया। मुक्ताबाई के हाथ में पत्र आया तो वे हँस पड़ी। बोलीं-हमारे योगीराज वर्षो की तप-साधना के बावजूद कोरे ही रह गए। निवृतिनाथ ने इस व्यंग्य पर मुक्ताबाई को लताड़ा एवं पत्रवाहक से कहा- योगीराज को हमारी कुटिया पर आने का आमंत्रण दें। योग का प्रभाव देखने के लिए, हाथ मे सर्प का चाबुक लिए, सिंह पर सवार, सभी शिष्यो के साथ, वे मिलने गए। आलिंदी में विराजमान ज्ञानेश्वर, जिस दिवार पर भाई-बहन सहित बैठे थे, उसी को सक्रिय कर स्वागत हेतु चल पड़े। चांगदेव ने यह चमत्कार देखा और श्रद्धावनत् हो, ज्ञानदेव से दीक्षित हुए ।
यह दीवार आज भी आलिंदी (महाराष्ट्र) में देखी जा सकती है।
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