मुंबई कार्पोरेशन में एक इंजिनियर की नौकरी पाने के बाद वह युवा निरंतर भ्रमण करता। उसे स्वच्छता और प्रकाश की व्यवस्था सौंपी गई। उसे मेहतरों की बस्तियों में जाने के बाद, उनकी दुरवस्था देखने का अवसर मिला। बच्चे असहाय, अशिक्षित, गंदे थे। पुरुष शराब पीते-लड़ते व पत्निया दिन भर बच्चों से मार-पीट करतीं। जूए-शराब ने सभी को कर्जदार बना दिया था। इस प्रत्यक्ष नरक को देखकर उस इंजीनियर ने अपनी आधिकारिक स्थिति के मुताबिक कुछ प्रयास किए, पर कही से कोई सहयोग न मिलने पर नौकरी छोड़ दी और ‘भारत सेवक समाज’ का आजीवन सदस्य बन गया । उसने सारा जीवन गंदी बस्तियों में अछुतो के उद्धार, उन्हे शिक्षा देने, गंदी आदतें छुड़वाने, उन्हे साफ रखने के प्रयासों में लगा दिया।
वही युवक ‘ठक्कर बापा’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
आज के शहरीकृत भारत को, जो और भी गंदा है, हजारो ठक्कर बापा चाहिए।
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