कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था और वर्षा की झड़ी लगी थी। एक-एक करके नेता लोग निकले चले जा रहे थे, एक कोने में खड़े श्री व्यंकटेशनारायण तिवारी वर्षा रूकने की प्रतीक्षा में थे, अनेक नेता छाता लगाए हुए, उनके सामने से गुजरे और सभी ने केवल एक बात पूछी-``क्यों व्यंकटेश छाता नहीं लाए ?´´ अंत में आए महामना मालवीय, सिमटे खड़े तिवारी को देखते हुए बोले-``अरे, व्यकटेश, तुम यहॉं खड़े हो, आओ, छाते में हो लो।´´ महामना ने उन्हें खींचकर अपने छाते में ले ही लिया और बोले-``आखिर यह छाता हैं, किस काम के लिए ?´´
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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