निस्वार्थ समाज सेवा का दम भरने वाले एक अधकचरे समाजसेवी अपना बड़प्पन प्रदर्शित कर रहे थे-``मैं समाज के लिए सब कुछ करके भी प्रतिदान में कुछ नहीं चाहता, यश भी नहीं ?
उनके वक्तव्य के बाद इनके सामने एक पर्चा आया। उस पर लिखा था``यह वक्तव्य देने में क्या आपका यशभाव नहीं हैं, कि लोग आपकी निस्वार्थ सेवा भावना का लोहा मान जाये ?´´
इस पर उस सज्जन को कुछ बोलते न बना।
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