एक दार्शनिक से पूछा गया-``आप इस दुखी और असंतुष्ट संसार के बीच सुखी और संतुष्ट कैसे रहते हैं ?´´ उन्होने उत्तर दिया-``मैं अपनी ऑंखो का सही उपयोग जानता हूँ । जब मैं ऊपर देखता हूं, तो मुझे स्वर्ग याद आता हैं, जहॉं मुझे जाना हैं। नीचे देखता हूं तो यह सोचता हूँ कि जब मेरी कब्र बनेगी, तो कितनी कम जगह लगेगी और जब मैं दुनिया में चारों तरफ देखता हूँ तो मुझे मालूम होता हैं कि करोड़ों मनुष्य ऐसे हैं, जो मुझसे भी दु:खी हैं। इसी तरह संतोष पाता हूँ ।´´
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें