मरणासन्न डार्विन को थोड़ा होश हो गया। उन्होंने अपनी पुत्री से कहा-``बेटी, मैं न स्वर्ग जाना चाहता हूं न नरक। मैं तो यदि परलोक कहीं होता होगा, तो उसके द्वार पर अड़ा रहूंगा और इन पंडितो को न स्वर्ग में प्रवेश करने दूंगा और न नरक में। अन्यथा ये इस लोक की तरह परलोक में भी पाखंड फैलाए बिना न मानेंगे।´´
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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