खेड़ा (गुजरात) की बात हैं, एक जापानी व्यापारी किसी खरीद के लिए आए थे, एक दिन जब वह सज्जन हिसाब लिख रहे थे, तो उनकी पेंसिल टूट गई। पास ही खड़े एक भारतीय महोदय ने उन्हें दूसरी पेंसिल दे दी। जापानी भाई ने पेंसिल ले तो ली, पर लिखने की अपेक्षा उसके अक्षर पढ़ने लगे, लिखा था-``मेड इन हांगकांग।´´ उस पेंसिल को लौटाते हुए उन्होंने कहा-``नहीं भाई ! यह जापान की बनी नहीं हैं।´´ और आगे का हिसाब उन्होंने तभी लिखा, जब बाजार में दूसरी ``मेड इन जापान´´ पेंसिल आई। उनके इस देश प्रेम से भारतीय बहुत प्रभावित हुए।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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