सिकंदर के अरस्तु ने उससे कहा था कि भारत से आते समय तुम किसी संत को युनान ले आना। सिकंदर को एक दिन पता चला कि मगधराज के किसी गाव से दूर एक निर्जन स्थान पर कोई साधु है बडा अदभुत साधु है सिकंदर को संत की तलाश है वह संत के पास गया। बोला मुझे पहचान ! मुझे क्या जरुरत है तुम्हे पहचानने की साधु ने बडी बेरुखी से उतर दिया।
मै सिकंदर हूँ।
महान सिकंदर यहाँ क्यो आए हो।
हिन्दुतान को जीतने के लिए !
फिर ? फिर क्या, हिन्दुस्तान को जीतना मेरा सपना रहा है अब तक मै दुनिया के प्रायः सभी देशों को जीत चुका हूँ।
सबको जीतकर करोगे क्या ? सिकंदर को साधु की बाते बहुत अटपटी लग रही थी अब तक उससे किसी ने भी इतनी बेरुखी से बात नही की थी किंतु उससे पता था कि सच्चे साधु इसी मिजाज के होते होते है। उसने कहा, दुनिया के सारे देशो को जीतकर इस धरती का सबसे बडा धनवान सम्राट बन जाउंगा। उसके बाद क्या करोगे। उसके बाद करने को क्या रह जाता है, मै आराम से अपना जीवन बिताउंगा। सिंकदर ने कहा तुम इतना रक्तपात करके और लूटपाट करके सुख से रहना चाहते हो और मै अभी से बिना कुछ किए सुख से रह रहा हूँ। बोलो, बुदिमान हम दोनो मे से कौन है ? सिकंदर चुप रह गया। कोई उत्तर उसके पास नही था। उसे पहली बार यह लगा कि सचमुच वह किसी मुर्खतापूर्ण अभियान पर तो नही निकला है।
1 टिप्पणी:
काश ऐसा साधू इन आतंकवाद फैलाने वालों को भी मिल जाये और जन-जन के यह बात समझ में आजये तो हमारा देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया खुद-ब-खुद स्वर्ग में बदल जाये। बहुत अच्छी संदेशात्म्क प्रस्तुति आभार ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
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