शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

हम बदलेंगे-युग बदलेगा


हम अपना दृष्टिकोण परिष्कृत करें, रीति बदलें । अनुकरणीय आदर्शवादिता के लिये दुःसाहस कर सकना न तो कठिन है, न असंभव; इसका उदाहरण हमें अपने आचरण द्वारा लोगों के सामने प्रस्तुत करना होगा । परोपदेश की प्रवीणता प्राप्त करके वाक्-विलास भर हो सकता है, उससे कुछ बनता नहीं । दूसरों को गहरी प्रेरणा देने का एकमात्र उपाय यही है कि हम अपना आदर्श प्रस्तुत करके लोगों में अनुगमन का साहस उत्पन्न करें । व्यक्तियों का परिवर्तन ही युग परिवर्तन है । (वाङमय-६६, पृ.२.११) 


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