घमण्ड मत करो, वह बहुत बोझिल होता है । उसका रख-रखाव करने के लिये बहुत समय लगता है और खर्च पड़ता है । प्रसन्न रहना उससे कहीं अच्छा है । घमण्डी की तुलना में लोग हँसमुख से अधिक प्रभावित होते हैं । नम्रतायुक्त प्रसन्नता बड़प्पन की निशानी है और शेखीखोरी ओछेपन की ।
(अखण्ड ज्योति मार्च-१९८७, पृ.२)
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