शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

बुराई की गति


बुराई आदमी को पहले अज्ञानी व्यक्ति के समान मिलती है और हाथ बाँधकर नौकर की तरह उसके सामने खड़ी हो जाती है । फिर मित्र बन जाती है और निकट आ जाती है । फिर मालिक बनती है और आदमी के सिर पर सवार हो जाती है एवं उसको सदा के लिये अपना दास बना लेती है । (अखण्ड ज्योति, मार्च-५३)

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