निर्बलता पाप है । पापी व्यक्ति की तरह निर्बल को भी पृथ्वी पर सुख से जीने का अधिकार प्रकृति नहीं देती है । शरीर की कमजोरी से रोग घेरते हैं, मानसिक कमजोरी से चिन्ताएँ सताती हैं । अपनी बौद्धिक क्षमताएँ दुर्बल पड़ी हों तो यह निश्चित है कि आप पराधीनता के पाश में जकड़े होंगे । इसलिये आप बल की उपासना करो । शक्ति अर्जन जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है ।
(अखण्ड ज्योति जून-१९८९, पृ.१)
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