बुधवार, 8 जून 2011

अखण्ड ज्योति मई 1974

1. यथार्थता को समझे-आग्रह न थोपें

2. गतिशीलता की सजीव सरसता

3. ईश्वर का अनन्त अनुदान और हमारा प्रतिदान

4. मरने के बाद हमारे अस्तित्व का अन्त नहीं हो जाता

5. जीवन के दो प्रमुख तत्व-आशा और गति

6. हम अगले दिनों दिव्य-दृष्टि सम्पन्न होंगे

7. प्रेम का अमृत बनाम मोह का विष

8. स्वभाव परिवर्तन कितना कठिन कार्य

9. पतित देवता या समुन्नत कृमि कीटक

10. विभूति रहित सम्पदा निरर्थक हैं

11. सार्थक और सारगर्भित उपासना की रीति-नीति

12. मृदुलता की तलाश बाहर नहीं भीतर करे

13. क्या हम मनुष्यों के स्थानापन्न यन्त्र मानव होंगे ?

14. ऐसा बड़प्पन किस काम का ?

15. दैवी प्रतिशोध

16. कुकर्मो की सर्वनाशी विभीषिका

17. उसने प्रेत बनकर बदला लिया

18. क्या हम वृक्ष वनस्पतियों से भी पिछड़े रहेंगे ?

19. वैभव खोकर भी सत्यनिष्ठ बने रहें

20. पवित्रात्मा और पिशाचात्मा की आकृति

21. अपनो से अपनी बात

22. सबके कल्याण मे ही अपना कल्याण हैं

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