1. ईश्वर भक्त की कसौटी
2. समग्र सुख शान्ति की स्थापना धर्म धारणा से ही सम्भव होगी
3. पूर्वाग्रहों पर अड़कर न बैठे
4. जो ईश्वर से डरेगा उसे और किसी से नहीं डरना हैं
5. अचेतन मन की व्याधियाँ और उनका निराकरण
6. मनुष्य चाहे तो नर पिशाच भी बन सकता हैं
7. समुद्र की तरह हमारा अंतरंग भी महान् हैं
8. तथ्य का सत्य के प्रति समर्पण
9. मनुष्य का भौतिक मूल्यांकन न किया जाय
10. स्नेहशीलता और सहकारिता की सार्वभौम सत्प्रवृति
11. नर और नारी के बीच की खाई न्यायोचित नहीं
12. बुरे समय की दुष्प्रवृत्तियाँ
13. संगीत साधना में समर्पित दो महामानव
14. हम अपना गुरूत्वाकर्षण बनाये रखें
15. सौर परिवार के सदस्यों का पारस्परिक आदान-प्रदान
16. हँसने और रोने की अभिव्यक्ति दबायें नहीं
17. अपराधी प्रवृत्ति के स्रोतों को बन्द किया जाय
18. विचारों को सृजन की दिशा में नियोजित रखा जाय
19. कैन्सर-प्रकृति विरोधी आचरण का दुष्परिणाम
20. हम अंतःकरण की वाणी सुने और उसका अनुकरण करें
21. दान एहसान नहीं-परम पवित्र धर्म कर्तव्य हैं
22. उपार्जन का संग्रह नहीं वितरण किया जाय
23. अन्धा धुन्घ प्रजनन हर दृष्टि से अदूरदर्शितापूर्ण
24. प्रगति के पथ पर मर्यादित कदम ही बढ़ायें जाय
25. साधक को न अकेलापन खलता हैं न असफलता अखरती हैं
26. अपनो से अपनी बात
2. समग्र सुख शान्ति की स्थापना धर्म धारणा से ही सम्भव होगी
3. पूर्वाग्रहों पर अड़कर न बैठे
4. जो ईश्वर से डरेगा उसे और किसी से नहीं डरना हैं
5. अचेतन मन की व्याधियाँ और उनका निराकरण
6. मनुष्य चाहे तो नर पिशाच भी बन सकता हैं
7. समुद्र की तरह हमारा अंतरंग भी महान् हैं
8. तथ्य का सत्य के प्रति समर्पण
9. मनुष्य का भौतिक मूल्यांकन न किया जाय
10. स्नेहशीलता और सहकारिता की सार्वभौम सत्प्रवृति
11. नर और नारी के बीच की खाई न्यायोचित नहीं
12. बुरे समय की दुष्प्रवृत्तियाँ
13. संगीत साधना में समर्पित दो महामानव
14. हम अपना गुरूत्वाकर्षण बनाये रखें
15. सौर परिवार के सदस्यों का पारस्परिक आदान-प्रदान
16. हँसने और रोने की अभिव्यक्ति दबायें नहीं
17. अपराधी प्रवृत्ति के स्रोतों को बन्द किया जाय
18. विचारों को सृजन की दिशा में नियोजित रखा जाय
19. कैन्सर-प्रकृति विरोधी आचरण का दुष्परिणाम
20. हम अंतःकरण की वाणी सुने और उसका अनुकरण करें
21. दान एहसान नहीं-परम पवित्र धर्म कर्तव्य हैं
22. उपार्जन का संग्रह नहीं वितरण किया जाय
23. अन्धा धुन्घ प्रजनन हर दृष्टि से अदूरदर्शितापूर्ण
24. प्रगति के पथ पर मर्यादित कदम ही बढ़ायें जाय
25. साधक को न अकेलापन खलता हैं न असफलता अखरती हैं
26. अपनो से अपनी बात
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