रविवार, 5 जून 2011

अखण्ड ज्योति अप्रेल 1973

1. प्रगति के पाँच आधार

2. विवेकपूर्ण प्रतिशोध

3. नास्तिकवाद का अन्त अब निकट आ गया

4. सत्य शब्दों में आबद्ध नहीं, भावना में सन्निहित हैं

5. हम माया के बन्धनों में कब तक जकड़े रहेंगे

6. मृग मरीचिका में भटकती हमारी भ्रान्त मनःस्थिति

7. नैतिकता से ही विश्व शान्ति सम्भव

8. हराम की कमाई से पछतावा ही हाथ लगता हैं

9. दूसरों का सहारा न ताकें, आत्मनिर्भर बने

10. बीमारियाँ शरीर की नहीं, मन की

11. परिष्कृत का दृष्टिकोण का नाम ही स्वर्ग हैं

12. नैतिकता ही जीवन की आधारशिला

13. विश्व के हर घटक को प्रकृति ने प्रचूर सामर्थ्य दी हैं

14. सर्पो से भी हम बहुत कुछ सीख सकते हैं

15. प्रवासी भारतीयों के साथ घनिष्ठता सुदृढ़ की जाय

16. काय कलेवर में विद्यमान-ऋषि-तपस्वी और ब्राह्मण

17. प्रतिकूलता देखकर संतुलन न खोयें

18. शक्तियों का अनावश्यक अपव्यय न किया जाय

19. हिप्पीवाद एक विद्रोह विस्फोट

20. उत्कृष्टता की जननी-उदारता

21. हमारी अन्तःऊर्जा ज्योर्तिमय कैसे बने

22. दुःखों की आग में न जलने का मार्ग

23. यौन स्वेच्छाचार का समर्थक फ्रायडी मनोविज्ञान

24. अपनो से अपनी बात

25. गीत-असतो माँ सद्गमय


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