प्रसन्न रहना सब प्रकार के रोगों की दवा हैं और प्रसन्न रहने के लिये आवश्यक है अपना जीवन निष्कलुष बनाया जाये। निष्कलुक, निष्पाप, निर्दोष और पवित्र जीवन व्यतित करने वाला व्यक्ति ही सभी परिस्थियों मे प्रसन्न रह सकता है। और यह तो सिद्व हो ही चुका है कि मनोविकारों से बचकर प्रसन्नचित्त मनःस्थिति ही सुदृढ स्वास्थ्य का आधार है।
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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