श्वास की डोर से जीवन माला गुँथी है। जिंदगी का हर फूल इससे जुडा हैं, और इसी मे पिरोया है। श्वासों की लय और लहरें इन्हें मुस्कराहटें देती है। इनमें व्यतिरेक, व्वयधान, बाधायें-विरोध, और गतिरोध होने लगे तो सब कुछ अनायास ही मुरझाने और मरने लगता है। शरीर हो या मन, दोनों ही श्वास की लय से लयबद्व होते है। इसकी लहरे ही इन्हें सींचती है, जीवन देती है, यहाँ तक की सर्वथा मुक्त एवं सर्वव्यापी आत्मा का प्रकाश भी श्वासों की डोर के सहारे जीवन मे उतरता है।
श्वासों की लय बदलते ही जीवन का रंग रूप अनायास ही बदलने लगता है। क्रोध, घृणा, करूणा, वैर, राग-द्वेष, ईष्र्या-अनुराग प्रकारांतर से श्वास की लय की भिन्न-भिन्न अवस्थायें ही है, यह बात कहने सुनने की नही है, अनुभव करने की है। यदि महिने भर की सभी भावदशाओं एवं अवस्थाओं का चार्ट बनाया जाये तो जरूर पता चल जायेगा की श्वास की कौनसी लय हमें शान्ति एवं विश्रान्ति देती है। किस लय मे मौन और शान्त, सुव्यवस्थित होने का अनुभव होता है। किस लय के साथ अनायास ही जीवन मे आनन्द घुलने लगता है ? ध्यान और समाधि भी श्वासों की लय की परिवर्तनशीलता ही है।
श्वास की गति व लय को जागरूक हो परिवर्तित करने की कला ही तो प्राणायाम है। यह मानव द्वारा की गई अब तक की सभी खोजो मे महानतम है, यहाँ तक की चांद और मंगल ग्रह पर मनुष्य द्वारा पहुँच जाने से भी महान्, क्योकि शरीर से मनुष्य कही भी जा पहुँचे, वह जस का तस रहता है, परन्तु श्वास की लय के परिवर्तन से तो उसका जीवन ही बदल जाता है। हालांकि यह लय भी परिवर्तित होना चाहियें आंतरिक होशपूर्वक, जो प्राणायाम की किसी बंधी-बधाई विधी द्वारा संभव नही है। यदि विधि खोजनी ही है तो प्रत्येक श्वास के साथ होशपूर्वक रहना होगा। ऐसा हो तो श्वासों की लय के साथ जीवन की लय भी बदल जाती है।
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