मिट्टी का एक कण, पानी की एक बूँद, हवा की एक लहर, अग्नि की एक चिनगारी और आकाश का एक कतरा-‘‘पाँचो पहाड़ की चोटी पर खड़े होकर भगवान सूर्य से प्रार्थना करने लगे-‘‘हे सविता देव ! हम भी आपके समान बनना चाहते हैं। हमें भी अपनी ही तरह प्रकाशवान-ऐश्वर्यवान बना दो।’’ सूर्य की एक किरण चमककर अपने आराध्य का संदेश लेकर आई- ‘‘भाइयों-बहनों !भास्कर के समान तेजस्वी बनना चाहते हो तो उठो। किसी से कुछ माँगो मत। अपना जो कुछ हैं, वह प्राणिमात्र की सेवा में आज से ही उत्सर्ग करना आरंभ कर दो। याद रखो ! गलने में ही उपलब्धि का मूलमंत्र हैं। जितना तुम औरों के लिए दोगे, उतना ही तुम्हें मिलेगा। माँगने से नहीं मिलेगा।’’
विचार शक्ति इस विश्व कि सबसे बड़ी शक्ति है | उसी ने मनुष्य के द्वारा इस उबड़-खाबड़ दुनिया को चित्रशाला जैसी सुसज्जित और प्रयोगशाला जैसी सुनियोजित बनाया है | उत्थान-पतन की अधिष्ठात्री भी तो वही है | वस्तुस्तिथि को समझते हुऐ इन दिनों करने योग्य एक ही काम है " जन मानस का परिष्कार " | -युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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