सन १९०७ की बात है। डा. बलिराव केशवराव हेडगेवार जी उन दिनों नागपुर के नीलसिटी में दसवी कक्षा के छात्र थे। उन दिनों "वन्देमातरम" के महामंत्र से देश गूंज रहा था। "वन्देमातरम" शब्द सुनते ही अंग्रेज शासक कांप उठते थे। उन्हें लगता था कि "वन्देमातरम" उच्चारण करने वाले उनके समाज को चुनौती दे रहे हैं ।
एक बार राष्ट्र भक्त छात्रों ने योजना बनाई कि जैसे ही उनके विद्यालय में अंग्रेज निरीक्षक आये कि सभी भारतीय छात्र उठकर उसका "वन्देमातरम" से उदघोष से स्वागत करें। श्री हेडगेवार के नेतृत्व में छात्रों ने निरीक्षक के आते ही "वन्देमातरम" का उदघोष कर दिया। विद्यालय निरीक्षक को ये दृश्य देखकर पसीना आ गया। वह पैर पटकता हुआ नाराज होकर लौट गया ।
उसके जाने के बाद प्रिंसिपल ने वन्देमातरम का उदघोष करने वाले छात्रों के विरुद्ध कार्यवाही का आदेश जारी किया। हेडगेवार जी ने कहा "ये योजना मेरी थी। केवल मेरे विरुद्ध कार्यवाही की जाए।" उन्हें विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया। उन्होंने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा "यदि अपनी मातृभूमि की वंदना करना अपराध है तो मैं इस अपराध को बार-बार दोहराता रहूँगा।
श्री हेडगेवार लोकमान्य तिलक तथा डा. मुंजे जैसे राष्ट्रभक्त नेताओं के संपर्क में आये तथा स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने लगे। तिलक जी के निधन जी के बाद आगे चलकर १९३० के आन्दोलन में भी जेल गये।
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