विनोबाजी अपने पत्रों को संभालकर रखते थे और उन सबका यथावत् उत्तर भी दिया करते थे। एक दिन उनके पास गांधी जी का एक पत्र आया, तो उन्होंने उसे पढ़कर फाड़ दिया। उनके पास ही श्री कमलनयन बजाज भी बैठे थे। उन्हें यह देख आश्चर्य हुआ। वह अपने उद्वेग को दबा न सके और उन्होंने उन फटे टुकड़ों को जोड़कर पढ़ा तो उसे विनोबा जी की प्रशंसा से ओत-प्रोत पाया। उसमें लिखा था-'आपके समान उच्च आत्मा मैंने और कहीं नहीं देखा।''
साश्चर्य बजाजजी ने पूछा, 'आपने यह पत्र फाड़ क्यों दिया? सही बात जो लिखी थी। इसे संभालकर रखना था।' सस्मित विनोबा जी ने उत्तर दिया, ''यह पत्र मेरे लिए बेकार है, अत: मैंने फाड़ डाला। पूज्य बापू ने अपनी विशाल दृष्टि से मुझे जैसा देखा, इस पत्र में लिख दिया है, पर मेरे दोषों की उन्हें कहां खबर? मुझे तो आत्म-प्रशंसा बिल्कुल पसंद नहीं। हां! कोई मेरे दोष बतावे, तो मैं बराबर उनका ख्याल करूंगा।''
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