राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर (श्री गुरूजी) समय मिलते ही वृद्धजनों तथा धार्मिक विभूतियों के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तत्पर रहते थे।
एक बार १९७१ में वे इंदौर पधारे। एक स्वयंसेवक अपने नवनिर्मित आवास पर उन्हें सादर भोजन कराने ले गया। भोजन करने के उपरान्त बैठकर आनंदपूर्वक देश व समाज की वर्तमान स्थितियों पर चर्चा होती रही। लौटते समय वे सभी के साथ तीसरे मंजिल से नीचे आ गए। अचानक उन्हें स्मरण आया कि स्वयंसेवक की माताजी को प्रणाम करना तो याद नहीं रहा। स्वयंसेवक ने कहा, "मैं माताजी को यही बुला लेता हूँ।"
गुरूजी बोले,"अरे, जिनके चरण वंदन करके आशीर्वाद लेना है, उन्हें नीचे बुलाना कहाँ की बुद्धिमानी है।" वे स्वयं तेजी से सीढ़ियाँ चढ़कर तीसरी मंजिल पर पहुँचे तथा माताजी के चरण-स्पर्श करके आशीर्वाद लिया। वृद्ध माता के प्रति सभी उनकी श्रद्धा-भावना देखकर हतप्रभ रह गए।
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