जेतवन में भगवान बुद्ध प्रवचन देते थे। एक दिन एक भिक्षु ने पूछा- तथागत यह वातायन में एक पक्षी प्रतिदिन आपके प्रवचन के शुरू होने के कुछ क्षण पूर्व आकर चुपचाप बैठ जाता है और तब तक शांत बैठा रहता है तब तक आपके प्रवचन समाप्त नहीं हो जाते। यह आपके प्रवचन बड़े ध्यान से सुनता है कृपया इसका रहस्य बताएँ।
बुद्ध ने कुछ क्षण वातायन में बैठे उस पक्षी को देखा फिर कहा- भंते हम जीवन में अहंकारवश या अन्य सांसारिक कार्यों के चलते बहुत सारे ऐसे मौके छोड़ देते हैं जो हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। यह पक्षी अपने पिछले जन्म में एक सेठ था और इसी तरह बुद्ध उसके नगर से गुजरते थे, लेकिन चूँकि यह सेठ था और इसे बुद्ध के चरणों में नमन करने की फुर्सत नहीं थी, लेकिन बुद्ध सब जानते हैं कि उसे कितनी फुर्सत थी।
यह व्यक्ति बुद्ध को देखने और उन्हें सुनने का मौका चूक गया, लेकिन मरने के बाद जब यह पक्षी बना तो इसकी चेतना में स्मृति शेष रही और यह 'भाव बोध' द्वारा जानता है कि इससे कुछ गलत हुआ है, लेकिन इसका 'भाव बोध' भी अच्छा है कि इसने फिर से चूके हुए मौके को पकड़ लिया।
हमारे जीवन में भी ऐसे बहुत से मौके आते हैं जबकि हम भगवानश्री को देखने और सुनने से चूक जाते हैं, क्योंकि हम किसी अन्य तथाकथित के चक्कर में लगे रहते हैं। ऐसे आदरणीय और सच्चे गुरुओं को गुरु पूर्णिमा पर शत: शत: नमन...।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें