शनिवार, 31 जुलाई 2010

मन्दिर और वैश्या

दो मित्र थे । दोनों शिव मन्दिर में दर्शन करने जा रहे थे । बरसात हो रही थी रास्ते में वैश्या के कोठे की झंकार सुनाई दी । एक दोस्त बोला तुम जाओ मैं तो वैश्या के पास जाऊंगा उसका रंग-ढंग देखूंगा । दूसरा बोला नहीं मैं तो मन्दिर ही जाऊंगा दोनों अपनी- अपनी जगह पहुँच गए । एक मन्दिर में और एक कोठे पर ।

अब कोठे वाला क्या सोचता है की मेरा दोस्त तो मन्दिर में भगवान् के दर्शन कर रहा होगा मैं कहाँ फँस गया और जो मन्दिर गया वो सोच रहा था इतनी बरसात मैं भींग गया । मेरा दोस्त उस वैश्या के पास आनंद से बैठा होगा । दोनों का भाव एक दूसरे की तरफ था ।

कुछ समय के बाद दोनों दोस्त मर गए। एक को स्वर्ग मिला । एक को नरक मिला।जो मन्दिर में गया था उसको नरक और जो कोठे पर गया था उसको स्वर्ग ।

दोनों फिर मिले तों नरक वाले दोस्त ने स्वर्ग वाले दोस्त से पूछा ,"तुझे स्वर्ग क्यों मिला तू तो कोठे पर गया था "।

वो मित्र बोला गया जरुर था मगर मेरा मन मन्दिर में ही था तब उसको समझ आई मन्दिर में तो वह गया जरुर था मगर मन तों वैश्या में ही था ।गौरतलब जो चीज मन से न की जाये वो सफल नहीं होती ।

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