सुकरात को जहर दिए जाने के एक दिन पहले उनके मित्र व शिष्य उनसे मिलने पहुंचे। उनके शिष्य क्रेटो ने कहा कि हम आपको यहां से भगाने आए हैं। पर सुकरात किसी कीमत पर भी भागने को तैयार नहीं हुए।
सुकरात को मृत्युदंड दिया जाना था। उन्हें जहर दिए जाने के एक दिन पूर्व उनके कुछ मित्र व शिष्य उनसे मिलने जेल पहुंचे। उनके परम शिष्य क्रेटो ने उनसे कहा- गुरुवर! हमने आपके यहां से भाग निकलने का पूरा प्रबंध कर लिया है। आप तैयार हो जाइए। सुकरात हंसकर बोले- केट्रो! आज तक मैंने तुम्हें सत्य का पाठ पढ़ाया है और आज तुम मेरे शिष्य होकर मुझे असत्य, भय और अनास्था का पाठ पढ़ा रहे हो! क्यों? क्रेटो ने समझाते हुए कहा- यह समय तर्क करने का नहीं है गुरुदेव! अभी प्रश्न सत्य-असत्य का नहीं, प्राणरक्षा का है।
सुकरात ने उसी दृढ़ता से कहा- मेरे प्राणों के मोह में तुम यह भी भूल गए कि सत्य मुझे प्राणों से भी प्यारा है। मुझे मृत्युदंड सुनाया गया है और अब मैं उससे भागकर सत्य से मुंह कैसे मोड़ लूं! क्रेटो ने तर्क दिया-आपको दिया जाने वाला मृत्युदंड भी तो असत्य है। उसका कोई कारण नहीं है। सुकरात ने भी वितर्क किया- तो मृत्युदंड देने वालों के असत्य को काटने के लिए मैं भी सत्य का मार्ग छोड़ दूं? नहीं क्रेटो, मेरे भाग निकलने पर भगवान भले ही मुझे क्षमा कर दें पर इतिहास मुझे क्षमा नहीं करेगा और देश का इतिहास ही मेरा भगवान है।
तुम जाओ। क्रेटो ने बहुत प्रयत्न किया, तर्क दिए, लेकिन सुकरात नहीं माने और अंत में बोले- क्रेटो, तुम पागल हो। मैं सत्य हूं और सत्य कभी मर नहीं सकता। तुम मर जाओगे, लेकिन मैं कभी नहीं मरूंगा। वर्षो बीत गए, लोग सुकरात को जानते हैं किंतु क्रेटो को नहीं के बराबर जानते हैं।
वस्तुत: सत्य को अपने आचरण में जीने वाले लोग धरती पर न सही, किंतु इतिहास में अंत तक जीवित रहते हैं।
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