एक राजा हर समय ईश्वर की भक्ति में डूबा रहता था। उसकी इकलौती लड़की भी उसी की तरह धर्मानुरागी थी। राजा की इच्छा थी कि वह अपनी पुत्री का विवाह ऐसे युवक के साथ करे ,जो उसी की तरह धार्मिक प्रवृत्ति का हो। एक दिन राजा को एक ध्यानमग्न युवक मिला। राजा ने उससे पूछा, ‘तुम्हारा घर कहां है?’ युवक ने उत्तर दिया, ‘ईश्वर जहां रखता है, वहीं मेरा घर है।’ राजा ने प्रश्न किया, ‘तुम्हारे पास कुछ सामान है?’ युवक ने कहा, ‘प्रभु की कृपा के अलावा मेरे पास कुछ नहीं है।’ उससे प्रभावित होकर राजा ने अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया। विवाह के बाद राजा की बेटी पति के साथ जंगल में गई और एक पेड़ के नीचे डेरा डाला। उसने देखा कि पेड़ के कोटर में रोटी का टुकड़ा रखा है। उसने पति से पूछा , ‘यह क्या है?’ पति ने जवाब दिया, ‘आज रात इससे काम चलेगा, इसलिए इसे कल बचाकर छोड़ा था।’
यह सुनकर राजकन्या रोने लगी और अपने पिता के घर लौटने की तैयारी करने लग गई। पति ने कहा, ‘मैं जानता था कि यही होगा। तुम्हारा लालन-पालन महल में हुआ है, तुम मुझ जैसे गरीब के साथ निभा नहीं सकोगी।’ राजा की बेटी ने उत्तर दिया, ‘मैं गरीबी से नहीं डरती। मुझे दुख इस बात का है कि ईश्वर के प्रति आपका पूर्ण विश्वास नहीं है। इसी से आपने सोचा कि कल क्या खाएंगे और रोटी का टुकड़ा बचाकर रख लिया।
ईश्वर को देना होगा तो वह स्वयं देगा, हम इसकी चिंता क्यों करें। मैंने सोचा था कि मुझे ऐसा पति मिले जिसकी प्रभु भक्ति में कोई कमी न हो। इसी से मैंने आपका वरण किया पर मैं संभवत: गलत हूं।’ युवक बहुत पछताने लगा। राजकन्या ने कहा, ‘आप कान खोलकर सुन लीजिए कि आपके साथ रोटी का यह टुकड़ा रहेगा या मैं।’ यह सुनकर युवक की आंखें खुल गईं। उसने रोटी का टुकड़ा फेंक दिया।
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