शाम से ही मंदिर में भीड़ लगी हुई थी। मंदिर के बाहर जनसमुदाय उमड़ पड़ा था। भीड़ को नियंत्रण में रखने के लिए तथा जनता के जानमाल की रक्षा के लिए कई पुलिस कांस्टेबल भाग-दौड़ रहे थे। एक कांस्टेबल जो मंदिर की सीढ़ियों के ठीक नीचे तैनात था, अत्यंत ही तत्परता से आने-जाने वालों की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए उनकी सहायता भी कर रहा था। मंदिर के बाहर कुछ मिठाई की दुकानें लगी थीं।
जहां पर एक छोटी-सी बालिका बहुत देर से भीख के लिए गिड़गिड़ा रही थी। वह बहुत भूखी थी किंतु कोई उसकी ओर ध्यान नहीं दे रहा था। तभी उस बालिका ने देखा कि जलेबी की एक दुकान से दुकानदार उठकर कहीं गया है। भूख से व्याकुल उस बालिका ने धीरे-धीरे दुकान की ओर कदम बढ़ाए और फिर इधर-उधर देखकर जल्दी से दो जलेबियां अपनी मुट्ठी में भर लीं, तभी दुकानदार आ पहुंचा। उसने उसे पकड़ लिया और मार लगाई।
बालिका जोरों से रोने लगी। वहां तैनात कांस्टेबल यह सब देख रहा था। इधर उसका साथी कांस्टेबल मंदिर से वापस आकर बोला- जाओ दर्शन कर आओ। पहले कांस्टेबल ने कहा- मैं यहीं से दर्शन कर रहा हूं। फिर वह बालिका के पास आया और उसे दुकान पर ले गया। उसे जलेबी दिलवाई और कहा- खा ले बेटा!
अब चोरी मत करना। चोरी करना बुरी बात है। बालिका ने जीभरकर जलेबियां खाईं। उसे खाते देखकर जो तृप्ति और संतोष उसकी आंखों में था, वह दर्शन कर लौटने वालों की आंखों में भी नहीं था। जो व्यक्ति निर्धन, दुर्बल व दुखी प्राणियों में भगवान के दर्शन करे, वही सच्चा उपासक है। केवल मूर्ति में भगवान को देखना मात्र एक छलना है।
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