एक बार राजा श्रोणिक शिकार करने जंगल में गए। वहां उन्हें यशोधर मुनि तपस्या करते हुए दिखे। राजा को लगा कि उनकी वजह से उन्हें शिकार करने को नहीं मिलेगा। तभी सामने एक लंबा सांप आता दिखाई दिया। राजा ने गुस्से में उस सांप की गर्दन काट कर सांप को मुनि के गले में डाल दिया और महल लौट आए। जब उन्होंने रानी चेलना से इस घटना का जिक्र किया तो वह बहुत दुखी हुईं और बोलीं, ‘यह तो आपने बहुत गलत काम किया है।’
रानी उन्हें साथ लेकर वहां पहुंचीं जहां, मुनि तपस्या कर रहे थे। उस मरे हुए सांप की वजह से ढेर सारी चींटियां मुनि के शरीर पर चढ़ गईं थीं। रानी ने नीचे जमीन पर चीनी डाल दी, तो धीरे-धीरे सारी चींटियां नीचे उतर आईं। फिर उन्होंने उस मरे हुए सांप को दूर फेंका और शरीर को आहिस्ता-आहिस्ता स्वच्छ करके वहां चंदन का तेल लगा दिया, जहां पर चींटियों ने काट लिया था।
फिर राजा-रानी हाथ जोड़कर खड़े हो गए। मुनि ने आंखें खोलीं और पहले राजा श्रेणिक और फिर रानी चेलना को आशीर्वाद दिया। राजा श्रोणिक रोने लगे। उन्होंने साफ-साफ बता दिया कि उन्होंने मुनि के साथ क्या किया था। उन्होंने यह भी कहा कि वह आशीर्वाद के पात्र नहीं हैं, उसकी असल हकदार तो चेलना है। मुनि मुस्कराते हुए बोले, ‘चेलना तो है ही, पर तुम भी इसके पात्र हो क्योंकि तुमने अपनी गलती स्वीकार कर ली है।’
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