बुधवार, 16 नवंबर 2011

अंहकार

एक कुत्ता गाड़ी के नीचे-नीचे चल रहा था, सामने से दूसरा कुत्ता आ रहा था। उसने पूछा,‘ भाई! गाड़ी के नीचे कैसे ?’ उस कुत्ते ने गर्व से कहा,  ‘ देखते नहीं, गाड़ी मै चला रहा हूँ।’ दुसरे कुत्ते ने कहा, ‘रहने दो, ज्यादा मत फेकों। गाड़ी को तो ये बैल खीच रहै हैं।’ तो उस कुत्ते ने कहा, ‘ नहीं, मैं खीच रहा हूं, अगर मैं रूक गया तो गाड़ी भी रूक जाएगी।’ दुसरा कुत्ता बोला, ‘अच्छा! तुम रूक जाओ।’ और वह कुत्ता रूक गया, इत्तफाक की बात कि बैल भी रूक गए, गाड़ी भी रूक गई तो उस कुत्ते ने कहा,  ‘देखा मेरा करिश्मा।’ और वह कुत्ता ज्यों ही चला, संयोग की बात उसी समय बैल भी चल दिए, गाड़ी आगे बढ़ने लगी। चलते हुए कुत्ते ने ऐंठते हुए कहा, ‘ देखा, अब तो मानोगें कि गाड़ी को मैं ले जा रहा हूं।’ मित्रो ! तुमने भी तो यही भ्रम पाल रखा हैं कि इस गृहस्थी की गाड़ी को तुम ढो रहे हो- यह व्यर्थ का भार है, यह व्यर्थ का बोझ हैं। ‘ मैं और मेरा ’ कि जो वासना हैं, वह तुम्हे दीन बनाए हुए हैं।

महावीर कहते हैं कि जब तक ‘मैं’ की अकड़ हैं, तब तक दुःख हैं। मैं कि मृत्यु ही आत्मा का जीवन हैं। दुःख से मुक्ति चाहते हो, तो अहम् का परित्याग परम अनिवार्य हैं। सहज जीवन जीना सीखें। जगत में साक्षी मात्र बनकर रहें। लोग पूछते हैं,‘ मुनिश्री! अहंकार कैसे छोड़ें?’ मैं कहता हूं, ‘जब तक ‘मेरा’ नहीं छुटेगा तब तक ‘मैं’नहीं छूट सकता क्योंकि मेरा ही मैं को, अहंकार देता हैं। अहंकार का भोजन मेरा है, मैं का भोजन‘ मेरापन’ है, तो यह तो मैं है, यही ‘मैं’ तुम्हें मृत्यु की ओर ढकेलता हैं।

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