सोमवार, 12 दिसंबर 2011

परिश्रम और पुरूषार्थ का मूल्य

भिखारी दिन भर भीख माँगता-माँगता शाम को एक सराय में पहुँचा और भीतर की कोठरी में भीख की झोली रखकर सो गया।

थोड़ी देर पीछे एक किसान आया। उसके पास रूपयों की एक थैली थी। किसान बैल खरीदने गया था।

भीख की झोली रूपयों की थैली से बोली-‘‘बहन ! हम तुम एक बिरादरी के हैं, इतनी दूर क्यों हैं, आओ हम तुम एक हो जाएँ ?’’

रूपयों की थैली ने हँसकर कहा-‘‘बहन ! क्षमा करो, यदि मैं तुमसे मिल गई तो संसार में परिश्रम और पुरूषार्थ का मूल्य ही क्या रह जाएगा !’’

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