‘‘अरी मूर्ख गौरैया! तू दिन भर ऐसे ही तिनके चुनने में लगी रहेगी क्या ? छिः-छिः तू भी अजीब है, न कुछ मौज, न मस्ती-बस, वही दिन-रात परिश्रम, परिश्रम।’’
कौए की विद्रूप वाणी सुनकर भी गौरैया चुपचाप तिनके चुनने ओर घोंसला बनाने में लगी रही। उसने कोई उत्तर नहीं दिया। कुछ दिन ही बीते थे, वर्षा ऋतु आ गई। एक दिन बादल घुमड़े और जोर का पानी बरसने लगा। गौरैया अपने बच्चों सहित घोंसले में छिपी रही और कौआ इधर-उधर मारा-मारा फिरता रहा। शाम को वह गौरैया के पास जाकर बोला-‘‘बहन ! सचमुच मुझसे भूल हुई जो तुझे बुरा-भला कहा। तुझे इस प्रकार सुरक्षित बैठे देखकर अब मुझे मालूम हुआ कि मेहनत का फल सदा मीठा होता है।’’
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