सोमवार, 12 दिसंबर 2011

सहृदयता का आर्दश

एक बार देवता मनुष्यों के किसी व्यवहार से क्रुद्ध हो गए। उन्होंने दुर्भिक्ष को पृथ्वी पर भेजा और मनुष्यो के होश दुरस्त करने की आज्ञा दे दी।

दुर्भिक्ष ने अपना विकराल रूप बनाया। अन्न और जल के अभाव में असंख्य मनुष्य रोते-कलपते मृत्यु के मुख में जाने लगे। अपनी सफलता का निरीक्षण करने दुर्भिक्ष दर्पपूर्वक निकला तो उस भयंकर विनाश के बीच एक प्रेरक दृश्य उसने देखा।

एक क्षुधित मनुष्य कई दिन के बाद रोटी का छोटा टुकड़ा कहीं से पाता है, पर वह उसे स्वयं नहीं खाता, वरन भूख से छट-पटाकर प्राण त्यागने की स्थिति में पहुँचे हुए एक सड़े कुते को वह रोटी का टुकड़ा खिला देता है।

इस दृश्य को देखकर दुर्भिक्ष का हृदय उमड़ पड़ा आँखें भर आई। उसने अपनी माया समेटी और स्वर्ग को वापस लौट गया।

देवताओं ने इतनी जल्दी लौट आने का कारण पूछा तो उसने कहा-‘‘जहाँ सहृदयता का आर्दश जीवित हो, वहाँ देवलोक ही होता। धरती पर भी मैंने स्वर्ग के दृश्य देखे और वहाँ से उलटे पाँवों लौटना पड़ा।’’

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