गुरुवार, 20 अक्टूबर 2011

फूलों की तरह मुस्कराते रहो...

1) चारित्रिक समर्थता के बिना भौतिक प्रगति एवं सुव्यवस्था के दिवास्वप्न देखना उपयुक्त नहीं।
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2) चाह रहित मनुष्य का हृदय कोमल होता हैं। चाह वाले का हृदय कठोर होता है।
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3) चाहत सच्ची हो तो गहरी होती हैं और यदि गहरी हो तो पूरी होती है।
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4) चैरासी के चक्र से निकलने का दरवाजा मनुष्य शरीर में ही हैं परन्तु भोग और संग्रह की खुजली चलने से यह दरवाजा हाथ से निकल जाता है।
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5) चुनौतियों का नाम ही तनाव है।
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6) चलती को गाडी कहे, जमे दूध को खोया। रंगी को नारंगी कहे, देख कबीरा रोया।
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7) फरिश्ते से बेहतर हैं इन्सान बनना, मगर इसमें थोडी मेहनत ज्यादा है।
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8) फूहड गाने गन्दे चित्र, इनसे दूर रहो हे मित्र।
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9) फूलो की सुगन्ध हवा के प्रतिकूल नहीं फैलती, पर सद्गुणो की कीर्ति दसो दिशाओं में फैलती है।
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10) फूलों की तरह मुस्कराते रहो।
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11) फल की आतुरता प्रगति के मार्ग की सबसे बडी बाधा हैं।
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12) त्याग सुख लेना भी भोग हैं, जो पतन कराने वाला है।
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13) त्याग से पाप का मूलधन चुकता हैं, और दान से पाप का ब्याज।
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14) तृष्णा मनुष्य जीवन की सबसे नीची तह हैं, इससे नीचे कोई उतर नहीं सकता।
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15) तीन बात खेणी नहीं, खीम कतरी खोट। कतरी पूँजी आपणी, अर कुण न दीदो बोट।
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16) तीन सबसे बडी उपाधियाँ जो मनुष्य को दी जा सकती हैं वह हैं-शहीद, वीर और सन्त।
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17) तीन लक्ष्य- स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन, सभ्य समाज।
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18) तप की शक्ति प्रचण्ड हैं, उसके बल पर ही अध्यात्म जगत के सारे काम चलते है। तप की पूंजी जहाँ हो, वहाँ उतनी ही विजय मिलेगी। तप के बिना केवल बाहृ साधनो से कोई बडी सफलता प्राप्त नही की जा सकती।
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19) तप का सुफल ज्ञान है।
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20) तपस्या और विद्या अन्तःकरण की पवित्रता के बिना अनर्थ हो जाती है।
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21) ताराओं का भूषण चन्द्रमा, स्त्री का भूषण उसका पति, पृथ्वी का भूषण राजा और विद्या सभी का भूषण है।
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22) तात्कालिक लाभ की पूर्ति में जीवन जीना कलियुग है।
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23) तुमको वही लेना चाहिये जो तुम्हारे हिस्से में आया है।
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24) तुम्हे दया और सेवा करने के लिये भेजा गया हैं, सताने और छीनने के लिये नहीं।

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